ऐसी रही हमरी होली

अब भारत मे तो होली निपट गयी, भले ही लोगों ने सूखी होली खेली हो, काहे? अरे भई कई लोगों ने कहा था कि इस बार पानी से मत खेलो, पानी की बरबादी होती है, कई भले मानस तो होली वाले दिन हुई बारिश से ही घबड़ा गये। बोले हम तो होली सूखे रंगो (अबीर/गुलाल) से ही खेलेंगे, इसलिये। अब बार बार मत पूछना काहे? अपने शुकुल भी, रंग रूंग पोत पात कर फोटो खिंचवा लिये, तो हमरी भी इच्छा भयी कि काहे ना हम भी होली खेलें। लेकिन मार पड़े कुवैत वालों को हर त्योहार का बन्टाधार कर देते है।सारे त्योहारों को वीकेन्ड तक खींच ले जाते है, मतलब अगर कोई त्योहार सोम या मंगल को पड़े तो उसे गुरुवार या शुक्रुवार को मनाया जाए। ये कहाँ का इन्साफ़ है भई? इनका बस चले कि अगर कोई वीक डेज मे अल्लाह को प्यारा हो जाए तो शायद दफ़नाए भी वीकेन्ड में, क्या जमाना आ गया है।लेकिन कोई कुछ नही कर सकता ना, इसलिये हम भी चुपचाप अपने आपको कुवैती ढर्रे मे ढाल लिए है। खैर बात हो रही थी होली की।

holiतो भैया, दिन रहा शुक्रवार का, तारीख 17 मार्च, हमने मनाई होली, वो भी ऐसी वैसी नही, पूरी पूरी यूपी टाइप की होली, हो भी क्यों ना, उपकार संस्था(उत्तर प्रदेश से आये लोगों की संस्था) की जो होली थी। हम भी अपनी टीम को लेकर पहुँच गये, बुलावा 10:30 का था, लेकिन मामला खाने पीने का था,इसलिये हम इन्श्योर किए कि सवा दस बजे ही पहुँच जाए।हुआ भी यही, जाते ही पहले पहल तो गुझिया पर हाथ साफ़ किया गया। फिर भेलपूड़ी और सेवपूड़ी को निपटाया गया। अब जरा लग रहा था कि हाँ कुछ खाए हैं, क्योंकि सुबह से श्रीमतीजी ने सिर्फ़ चाय पर रखा था, बोली, तुम वहाँ भी खाओगे ही, मानोगे तो है नही, इसलिये यहाँ कुछ ना खाया जाए।अब शादीशुदा होने के नफे नुकसान तो झेलने ही पड़ते है कि नही। क्यों शुकुल का कहते हो? जाते ही सबसे पहले तो भाई लोगों ने हमे अबीर से नहला दिया, हमारी बहुत इच्छा हो रही थी कि गाना गाएं “हम पे किसने हरा रंग डाला…..” अब किसको पूछते, कोई एक होता तो बताते, पूरा का पूरा गैंग ही हमारे पीछे पड़ा था। मतलब रजिया गुन्डों के बीच फ़ंस गयी।इतनी मशक्कत से गुझिया और बाकी खाने पीने का सामान सबको जुगाड़ करके दिया था, कि लोग हमे बक्श देंगे, लेकिन नही लोग आजकल एहसान मानते कहाँ है, बिना कोई हीलहुज्जत किए हम भी रंग लिये, आप भी फोटो को देखिए।फिर बारी थी लजीज लंच की, अब अगर हम नही खाते तो लोग बाग नाराज हो जाते, इसलिये हमने उन्हे नाराज ना करने का जोखिम उठाते हुए लन्च भी हपक के किया।सूखी होली के बाद, बारी थी, डान्स डून्स की, इसमे तो अपनी फीस पहले से ही माफ़ है, इसलिये हम सिर्फ़ मूक दर्शक थे और लोगों को पकड़ पकड़ कर डान्स करवाने की जिम्मेदार हमने उठाई, लोगो ने झूम झूम कर डान्स किया।सभी ने बहुत मस्ती की। अब बारी थी, भाभियों को पकड़ पकड़ रंग रंग लगाने की, सूखे रंगों से ना जाने कब लोग बाग गीले रंगो पर आ गये। एक दो लोग थे, जो बड़बड़ा भी रहे थे, लेकिन उनकी सुनता कौन है, बुरा ना मानो होली है। सभी भाभियों को अच्छी तरह से रंग लगाया गया, हाँ इस कार्य में हम मोस्ट एक्टिव थे। होली के फोटोग्राफ़ कल तक हमारी फोटो गैलरी मे लग जाएंगे,यूजरनेम और पासवर्ड वही पुराना रहेगा। इस पोस्ट नीचे अपडेट भी लगा दिया जायेगा।

अब चूंकि ये होली एक थीमपार्क मे हो रही थी, इसलिये होली के बाद राइड्स पर जाने का प्रोग्राम बना, सुबह सुबह तो पार्क मे कोई नही था, सिवाए हम होली के हुड़दंगियों के, लेकिन राइड पर जाते जाते तीन बज गये थे, और चार बजे पार्क सामान्य पब्लिक के लिये खोल दिया गया। अब हम रंगे पुते पार्क मे घूम रहे थे। हद तो यहाँ तक थी, पार्क मे सफ़ाई कर्मचारी भी हम लोगो से ज्यादा साफ़ सुथरे दिख रहे थे। शकल सूरत से हम भले ही जमादार दिख रहे थे, लेकिन हाथो मे कीमती मोबाइल और डिजीटल कैमरे देखकर कुवैतियों का मन हमलोगों को सफाई कर्मचारी मानने से इन्कार कर रहा था। वहाँ पर आने वाले बाकी कुवैती हमको रोक रोक पूछ रहे थे, कि क्या चोट लग गयी है, कैसे लगी वगैरहा वगैरहा….अब हम जवाब देते देते थक गये, कि नही भाई, ये होली का रंग है, कुवैती भी बधाई देते हुए आगे बढ जाते, लेकिन जब तक वो आगे बढता, तो दूसरा दुआ सलाम के लिये खड़ा होता।ये भी अजीब स्थिति थी, हमने भी ऐलान कर दिया कि, चलो वापस चलते है, बड़े बूढे तो मान गये, लेकिन बच्चों ने बगावत कर दी, बोले आप लोग बाहर जाकर बैठो, हम लोगो तो सारी राइड झूल कर ही दम लेंगे। अब मरता ना क्या करता, अपना तमाशा बने देखते रहे। बच्चों ने लगभग दो घन्टे बाद, घर चलने के लिये हामी भरी और हम सभी लोग घरों को प्रस्थान कर गये।

अब रास्ते मे जब आ रहे थे, तो एक रोड एक्सीडेन्ट हो गया था, पुलिस की गाड़ी जाम हटवा रही थी, हम तो निकल लिए, लेकिन मिर्जा को पुते देखकर पुलिस ने उनकी गाड़ी किनारे लगवा दी, मिर्जा लाख दलीले दें, लेकिन पुलिस वाले मानने को तैयार नही थे, बड़ी मुशकिल से मिर्जा किसी तरह से उनको समझाकर अपने घर पहुँचा, ये बात मिर्जा ने हमे रात को फोन करके बताई। खैर इस एक घटना के बाकी सब सही रहा,इस तरह से हमने होली मनाई।आपकी होली कैसी रही?

और हाँ, फ़्लिकर पर एक चिट्ठाकार ग्रुप बनाया गया है, होली और दूसरी तस्वीरों के आदान प्रदान के लिये। सभी चिट्ठाकारों मित्रों से निवेदन है कि वहाँ पर अपने आपको रजिस्टर करें अथवा अमित,आलोक,देबू या मुझे ईमेल करें,निमन्त्रण के लिये। ये सभी इस ग्रुप के संचालक है, कोई और बन्धु संचालन के लिये आगे आना चाहे तो उसका भी स्वागत है।

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2 Responses to “ऐसी रही हमरी होली”

  1. बिल्कुल नकली फोटो लग रहा है!

    ये सारे “ओब्जेक्ट्स” तो फ़ोटोशाप की साईट पर मिलते हैं – पहाड जैसा, हरी घास जैसा, अलग अलग कपडों में अलग अलग उम्र के लोगों का, हरे हरे पेडों का, और बिल्कुल सफ़ेद झक्क कपडों में किसी भले आदमी का.

    आपने तो बस अपना चेहरा वहाँ फ़िट कर लिया है.

    और तो और, ऎसा लग रहा है कि वो हरा रंग भी बाद ही मे एडिट कर के लगाया है.

    असली तो फ़ुरसतिया जी वाला था. 😉

    ही..ही..ही..!!
    बुरा ना मानो, होली है.
    (और मान भी लो तो का बिगाड्ल्लोगे?)

  2. होली में इतने साफ रिन की चमकार वाले कपड़े!लाहौलविलाकूवत। लेख चौकस।