पसीने पसीने हुई जा रहे हो…


पसीने पसीने हुई जा रहे हो
ये बोलो कहां से चले आ रहे हो

हमें सब्र करने को कह तो रहे हो
मगर देख लो ख़ुद ही घबरा रहे हो

ये किसकी बुरी तुम को नज़र लग गई है
बहारों के मौसम में मुर्झा रहे हो

ये आईना है ये तो सच ही कहेगा
क्यों अपनी हक़ीक़त से कतरा रहे हो
-सईद राही


2 Responses to “पसीने पसीने हुई जा रहे हो…”

  1. कविता बहुत अच्छी लगी । पर पहली लाईन मे टाईप की गलती लग रही है :

    “पसीने पसीने हुई जा रहे हो” में
    “हुई” के जगह पर “हुए” ज्यादा शोभेगा ।

  2. mazda xedos 6

    mazda xedos 6