तू कहीं भी रहे सर पे तेरे इल्ज़ाम तो है


तू कहीं भी रहे सर पे तेरे इल्ज़ाम तो है
तेरे हाथों की लकीरों में मेरा नाम तो है

मुझको तू अपना बना या न बना तेरी ख़ुशी
तू ज़माने में मेरे नाम से बदनाम तो है

मेरे हिस्से में कोई जाम न आया न सही
तेरी महफ़िल में मेरे नाम कोई शाम तो है

देख कर लोग मुझे नाम तेरा लेते हैं
इस पे मैं ख़ुश हूं मुहब्बत का ये अंजाम तो है

वो सितमगर ही सही देख के उसको ‘सबीर’
शुक्र इस दिल-ए-बिमार को आराम तो है
सबीर जलालाबादी

One Response to “तू कहीं भी रहे सर पे तेरे इल्ज़ाम तो है”

  1. क्या बात है हुज़ूर! आपका कानपुर आना कब हो रहा है? मैं २२ जुलाई को कानपुर पहुंचूंगा।