थम गए सुर
आज मन फिर उदास है। क्योंकि सुर थम गए है। भारत रत्न मशहूर शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का कल रात इन्तकाल हो गया। उस्तादजी ९२ वर्ष के थे। उस्ताद उन गिने चुने कलाकारों मे से थे, जिन्होने अपनी शहनाई की आवाज दुनिया के कोने कोने मे पहुँचाई। उस्ताद अपने आप मे गंगा जमुनी तहजीब का जीता जागता नमूना थे। जहाँ राष्ट्रीय समारोह मे उनकी शहनाई की गूंज सुनाई देती थी, वंही कई मन्दिरों मे भी उस्ताद ने कार्यक्रम किए। कुछ महीने पहले जब वाराणसी में बम धमाके हुए थे तो उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ान ने कड़े शब्दों में उसकी निंदा की थी। बिस्मिल्लाह खां जी पिछले काफ़ी समय से बीमार चल रहे थे, उनकी सलामती की दुआ करने वालों मे हिन्दू मुस्लिम सभी समान रुप से शामिल थे। उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के रुप मे आज हिन्दुस्तान ने और सितारा खो दिया है। हिन्दी चिट्ठाकारों की ओर से उस्ताद जी को भावभीनी श्रद्धांजलि।
संक्षिप्त परिचय:
बिस्मिल्लाह खां का जन्म बिहार के दुमरांव में २१ मार्च १९१६ को हुआ था। उनके पिता पैगम्बर बख्श सहित परिवार के लोग पीढ़ियों से शहनाई वादन से जुड़े थे। खाँ बचपन में अपने मामा अली बख्श के यहाँ वाराणसी आ गए तथा उन्होंने यहीं शहनाई की आगे संगीत साधना की। १५ अगस्त १९४७ को उस्ताद ने लाल किले में आयोजित आजादी के जश्न में शहनाई बजाई। उन्हें कई पुरस्कार एव उपाधियों से नवाजा गया। उन्हे प्रतिष्ठित पुरस्कार संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार, तथा १९६३ में उन्हें शहनाई चक्रवर्ती के सम्मान से नवाजा गया था। उन्हें १९६५ में तानसेन पुरस्कार तथा १९७५ में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार मिला था। खां साहब को १९६१ में पदमश्री, १९६८ में पदमभूषण, १९८० में पदम विभूषण और २००१ में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। उन्हें १९९४ में उत्तर प्रदेश सरकार के यश भारती पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, विश्व भारती सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों ने डी.लिट की मानद उपाधि प्रदान की थी।
इतने नामी व्यक्ति होने के बावजूद भी उस्ताद की जीवन शैली बहुत सादी थी, बनारस शहर मे अक्सर साइकिल रिक्शा से ही सफ़र करते थे। आखिरी दिनों मे काफ़ी बीमार रहने के बावजूद भी उनकी इच्छा थी कि स्वतन्त्रता दिवस पर दिल्ली मे शहनाई बजाएं, लेकिन अस्वस्थता की वजह से ऐसा सम्भव ना हो सका। बिस्मिल्लाह खां भले ही हमारे बीच ना रहे, लेकिन जब भी शहनाई की आवाज गूंजेगी, भारत के इस वीर की हम सभी को याद आएगी। मेरी तरफ़ से इस भारत वीर को पुन: भावभीनी श्रद्धांजलि।
रात साढ़े तीन बजे सूचना मिली.. बिसमिल्लाह ख़ान साहब का निधन संगीत जगत की अपूरणीय क्षति है. उनकी शहनाई की गूंज रूहानी सुकून देती है. शत शत नमन. गंगा-जमनी तहज़ीब के इस पैरोकार को.
शहनाई, शास्त्रीय संगीत और बनारस को नई ऊचाईयों तक पहुंचाने वाले बिस्मिल्लाह खांन साहब को हमारी भी श्रद्धांजलि।
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
उस्ताद जी को भावभीनी श्रद्धांजलि।
एक अनमोल हीरा हमने खो दिया।
sssssssssssssooooooooooooooooooo sad na
bt harampanti koi band nai karega politics se