मिर्जा का काव्य सृजन

हमारे एक पुराने मित्र है, मिर्जा साहब। यदि आप मिर्जा से परिचित ना हो तो यहाँ पर क्लिक करें, ये हमारे ब्लॉग के सबसे पुराने पात्रों मे से एक है। नए पाठकों के लिए बता देते है मिर्जा अच्छे खासे व्यक्ति है, काफी प्रभावशाली व्यक्तित्व के मालिक है। अभी पिछले कुछ महीनों से उन पर कविताएं लिखने का भूत सवार हो गया है। वो भी ऐसी वैसी नही भारी भरकम शब्दों वाली। उनकी अगर माने तो कविता सृजन ही अभिव्यक्ति का एकमात्र माध्यम है। परेशानी यहाँ तक नही है, यदि उनकी कविता ना सुनो तो गुस्से मे आगबबूला हो जाते है, यूपी इश्टाइल मे गाली गलौच तक करने लगते है और अगर एक कविता पर वाह! वाह! करो, तो पूरे हफ़्ते भरे का कोटा झिला देते है। इसे कहते है इधर कुँआ उधर खाई। कुछ मिलाकर इनकी इन कविता प्रेम ने सारे दोस्तों का जीना हराम कर रखा है। अब हमारा उनके साथ रोज का उठना बैठना है, इसलिए बातचीत तक तो हम साथ रहते है, लेकिन जहाँ वो कविता की बात शुरु करते है, हम किसी ना किसी बहाने कट लेते है। एक दिन उन्होने हमे पकड़ ही लिया, हमे लांग ड्राइव पर ले गए, शहर से लगभग पचास किलोमीटर दूर, रेगिस्तान के बीचो बीच, स्प्रिंग कैम्प में । इधर उधर की बातचीत के बाद सुनाने लगे अपनी नयी नवेली रचनाएं। अब हम भागने की स्थिति मे भी नही थे, रेगिस्तान मे दूर दूर तक ना कोई बन्दा ना बन्दे की जात, इच्छा तो यही हो रही थी, अभी रेतीला तूफान आ जाए, और ये मिर्जा किसी रेतीले टीले के नीचे धंस जाए, फिर हम दोस्ती का धर्म निभाते हुए, उसको बचाने के एवज मे कभी कविताएं ना सुनाने का वादा लें लें। खैर..ऐसा ना होना था, ना हुआ, हमने कविता सुनने मे  ना नुकर की तो मिर्जा पूछने लगे

अमां बरखुरदार आप कविता से इतना भागते काहे हो? कविता तो अभिव्यक्ति का माध्यम है, तुम भी तो लिखते हो अपना वो टुच्चा सा ब्लॉग मेरा पन्ना, हमने कभी मूंह बनाया? सारी की सारी पोस्ट पढी है कि नही? बेवजह और ऊलजलूल विषयों पर लिखी धीर गम्भीर पोस्ट पर भी हमने कभी मजाक उड़ाया? आयं दायं बाएं हर विषय पर लिखते हो, हमने कोई  टोका टाकी की है कभी?

अब हम क्या कहते, मिर्जा बात तो वाजिब ही कर रहा था। लेकिन वो कहते है ना जब आप कंही फंसने लगे तो किसी भी बड़े ज्ञानी का सहारा ले लो, बेड़ा पार हो जाएगा। इसलिए हमने उन्हे ओशो के एक प्रवचन के अंश का हवाला दिया, आशा है इसको पढकर मेरे उन कवि ब्लॉगर्स को भी अच्छा लगेगा, जो गाहे बगाहे हमे जबरदस्ती कविता पढवाने और वाह वाह करने पर मजबूर करते है। एक बार ओशो से एक सन्यासी ने पूछा :

आप कहते है सन्यासी को सृजनात्मक होना चाहिए, तो मैने काव्य सृजन शुरु किया है लेकिन कोई भी मेरी कविताएं सुनने के लिए राजी नही होता, आप बताइए मै क्या करुं।

 

सुनो रामलाल (सन्यासी का रखा गया नाम)! यह तो तुमने बहुत खतरनाक काम शुरु किया है। कुछ और सृजन करो, कुछ ऐसा सृजन करो जिसमे दूसरों पर हमला ना हो। ये कविता तो आक्रमण है, अब तुमने कविता का सृजन किया है तो श्रोता भी चाहिए। लेकिन श्रोताओं को भी आत्मरक्षा का अधिकार है। एक कहानी सुनो, एक आदमी कुंए मे गिर गया चिल्ला रहा  था बचाओ बचाओ! और एक आदमी कुएं के घाट पर ही खड़ा उसे झांक झांक कर देख रहा था, लेकिन बचाने के प्रयास नही कर रहा था। एक दूसरा आदमी वहाँ से गुजरा, उसने पूछा अरे! वह मर रहा है उसे बचाते क्यों नही?

उस आदमी ने कहा, वो अपनी मर्जी से कूदा है ?

कूदा क्यों?

क्योंकि मै उसे कविताएं सुना रहा था, उससे सुनी नही गयी और कुएं मे कूद गया। अब चिल्ला रहा है बचाओ बचाओ।

दूसरा व्यक्ति बोला, मै भी कवि हूँ, उसको कुंए मे ही जाकर कविताएं सुनाता हूँ, वहाँ से भागकर कंही जा नही सकता। वही कविता पाठ करता हूँ। यह कहकर वो व्यक्ति भी कुएं मे कूद गया।

इसलिए मिर्जा अब  मेरी स्थिति उस कुंए मे गिरे हुए व्यक्ति जैसी है, कंही भाग भी नही सकता।इसलिए ओशो की मानो, सृजन करो, लेकिन अहिंसात्मक, अनाक्रमकता वाला। ऐसा सृजन करो जिससे किसी का विध्वंस ना हो। यदि काव्य सृजन करो तो खुद लिखो, खुद को सुनाओ, दूसरों पर ऐसा जुल्म मत करो। वैसे भी किसी को इस तरफ़ फ़ंसाकर कविता सुनाना कहाँ की शराफ़त है? मिर्जा ने ना सुनना था, ना सुना, उसने पूरी पूरी 34 कविताएं सुनाई, जिसमे 7 कविताएं तो भावार्थ सहित समझायी, जो तीन तीन बार सुनने के बराबर थी। ये तो भला हो इयर बड का जिसकी रुई मेरे कानों के काफी काम आयी। और इस तरह से हमने मिर्जा को झेला। इस कहानी से हमे क्या शिक्षा मिलती है।

इस कहानी से हमे क्या शिक्षा मिलती है:

  1. यदि आप कवि है तो श्रोता को घेरकर ही कविता सुनाएं।
  2. घेरने के लिए लोगों को अपने यहाँ डिनर पर आमंत्रित करें। डिनर अक्सर दूर दराज के फार्महाउस/इलाकों मे ही रखें। लोगो की गाड़ी की चाबियां पहले ही जमा करवा लें।
  3. यदि आप श्रोता है तो रुई हमेशा अपने साथ रखें। रुई अच्छी  मात्रा मे रखें।(अच्छी रुई शर्मा मेडिकल स्टोर से मिलती है, रुई लेते समय हमारा नाम जरुर बताएं, उससे आपको फायदा हो ना हो, लेकिन  हमारा कमीशन अपने आप हम तक  पहुँच जाएगा।)
  4. श्रोताओं के लिए जरुरी है कि  मुस्कराते हुए, खुली आंखो से सोने की प्रैक्टिस करें। काव्य पाठ के दौरान इसकी जरुरत पड़ती है।  करवट बदलते बदलते वाह! वाह! बोलने की आदत डालें।
  5. ओशो की प्रवचनों के अंश हमेशा याद रखें, आड़े वक्त पर काम आ जाते है।

 

मिर्जा साहब और उनके शगूफ़ों के बारे मे पढने के लिए इधर का रुख करें। क्या आप भी कभी ऐसे फ़ंसे है, यदि हाँ तो लिख डालिए अपने अनुभव।

8 Responses to “मिर्जा का काव्य सृजन”

  1. जीतू भाई! आज तो आपने घेर ही लिया, कसम से पेट दर्द हुआ जा रहा है वैसे मिर्जा साहब का घेरने का इशटाइल हमें काफ़ी पसंद आया क्योंकि भागने के लिये और बचने के लिये कोई रास्ता नहीं छोड़ा. हा..हा..हा

  2. यह तो ब्लॉग का रंग रोगन ही बदल गया। हमें अचकचा कर लगा कि किसी और के ब्लॉग पर लैण्ड कर गये।
    रंग जम रहा है!

  3. असहज कविताऐं सदैव ही परेशान करती हैं।

  4. badhiyaa hai ji…

  5. ऐसे लोगो के लिये रामपुर मे दाद देने का एक अलग तरीका होता है,आपको भी बताये देते है..इसमे वाह वाह या इरशाद के बजाय इरशाद भाई दे जू…,दे जू…दे जू….कहा जाता है हम आपको खास बता दे यहा जू..के बाद का त लगभग साईलेंट अंदाज मे बोला जाता है या स्वर धीमा करके.. बाकी सुनाने वाला इस लखनवी अंदाज को समझ कर पतली गली से निकल लेता है..:)

  6. संजय बेंगाणी on फरवरी 10th, 2008 at 10:14 am

    मैने चान्दनी सुखाने रखी थी, धूप उसे निगल गई..”

    अरेरेरे कहाँ भागे जा रहे हो, पूरी तो सुनते जाओ…

  7. मस्त!!

  8. 🙂