शेरो शायरी का शौंक

आजकल बेगम साहिबा के कुवैत मे ना होने से, अपना गज़लो और नज़मो को पढने और सुनने का शौंक अपने पूरे पूरे शबाब पर है. सो जो कलाम हमें अच्छे लगते है, वो आप भी पढिये…


आंख जब बंद किया करते हैं
सामने आप हुआ करते हैं

आप जैसा ही मुझे लगता है
ख्व़ाब में जिस से मिला करते हैं

तू अगर छोड़ के जाता है तो क्या
हादसे रोज़ हुआ करते हैं

नाम उन का न कोई उन का पता
लोग जो दिल में रहा करते हैं

हमने ‘राही’ का चलन सिखा है
हम अकेले ही चला करते हैं
-सईद राही

2 Responses to “शेरो शायरी का शौंक”

  1. प्रत्यक्षा on जून 22nd, 2005 at 12:10 pm

    ये गज़ल पीनाज़ मसानी की अवाज़ में कई सालों पहले सुनी थी…आज यहाँ..आपके पन्ने पर फिर पढकर अच्छा लगा…

  2. aciphex

    aciphex